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Explained: GST गिफ्ट से क्या बिगड़ेगा सरकार का ब​हीखाता, 48 हजार करोड़ का लगेगा फटका?

जीएसटी रिफॉर्म के तहत जो ऐलान होने थे, वो हो चुके हैं. आम जिंदगी में यूज होने वाले सामानों पर टैक्स कम कर मिडिल और लोअर मिडिल क्लास को बड़ी राहत मिली है. इस जीएसटी रिफॉर्म से घरेलू मांग को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है. लेकिन इसकी कीमत रेवेन्यू लॉस के रूप में चुकानी पड़ेगी. वो भी ऐसे समय में जब सरकार का टैक्स कलेक्शन पहले से ही दबाव में देखने को मिल रहा है. आइए समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर सरकार के इस जीएसटी गिफ्ट से सरकार का बहीखाता कितना बिगड़ेगा? साथ ही ये जीएसटी रिफॉर्म देश के लिए कितना महत्वपूर्ण है?

कितना महत्वपूर्ण जीएसटी रिफॉर्म?

ये जीएसटी रिफॉर्म काफी अहम है. जीएसटी 1.0 की अधिकांश कमियों को दूर कर दिया गया है. टैक्स स्लैब की संख्या चार से घटाकर दो (5% और 18%) कर दी गई है, जिसमें 40 फीसदी टैक्स सिन प्रोडक्ट्स के लिए रिजर्व है. महत्वपूर्ण बात यह है कि आम उपभोग की वस्तुओं पर अब कम दरों पर टैक्स लगाया जाएगा है, जिससे घरों पर बोझ कम होगा और मजबूत घरेलू मांग का मार्ग प्रशस्त होगा. जीएसटी काउंसिल ने व्यापार सुगमता में सुधार के लिए संरचनात्मक सुधारों को भी आगे बढ़ाया है—रजिस्ट्रेशन को सरल बनाना, वर्गीकरण विवादों का समाधान करना और उलटे शुल्क ढांचे को हटाना.इस बीच, राज्यों के जीएसटी रेवेन्यू में पहले पांच सालों में हुई कमी को पूरा करने के लिए लिए गए लोन का भुगतान हो जाने के बाद कंपंसेशन सेस समाप्त कर दिया जाएगा. नई दरें 22 सितंबर से लागू होंगी, जो त्योहारों के मौसम से ठीक पहले है.

कितना होगा रेवेन्यू को नुकसान

सरकार का अनुमान है कि 2023-24 के उपभोग पैटर्न के आधार पर सालाना रेवेन्यू में 48,000 करोड़ रुपए की कमी आएगी. राजस्व सचिव अरविंद श्रीवास्तव ने कहा कि नेट रेवेन्यू में लगभग 48,000 करोड़ रुपए कम होने की संभावना है. श्रीवास्तव ने आईएएनएस के हवाले से कहा कि 2023-24 के उपभोग पैटर्न के आधार पर, नेट रेवेन्यू लगभग 48,000 करोड़ रुपए कम होने की उम्मीद है. इसी वर्ष के लिए हमने अलग-अलग आंकड़े कलेक्ट किए थे. इस प्रोसेस को बेहतर ढंग से समझने के लिए, यह समझना ज़रूरी है कि केवल एक ही संख्या पर ध्यान केंद्रित करना पूरी तस्वीर को सामने नहीं कर सकता है.

क्या ये नुकसान की बड़ी रकम है?

अधिकारियों का कहना है कि ये नुकसान की रकम कोई खास बड़ी नहीं है. फिजूलखर्ची में कटौती करके इसे कंट्रोल किया जा सकता है. अधिकारियों का यह भी तर्क है कि जीएसटी 2.0 के तहत बेहतर उपभोग और बेहतर कंपलायंस से मध्यम अवधि में इस नुकसान की काफी हद तक भरपाई हो जाएगी.

क्या सरकार के लिए ग्रॉस टैक्स कलेक्शन कोई चिंता की बात है?

मौजूदा समय में सरकार के लिए ग्रॉस टैक्स कलेक्शन बड़ी चिंता की बात मानी जा रही है. इस वित्तीय वर्ष के पहले चार महीनों में डायरेक्ट और इनडायरेक्ट दोनों टैक्स कलेक्शन बजट अनुमान से कम रहे हैं. बजट में अनुमानित 12 फीसदी की वृद्धि की तुलना में डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन 4 फीसदी कम हैं, जो सुस्त कारोबारी माहौल और कम इनकम टैक्स स्लैब के कारण कमजोर हैं. इनडायरेक्ट टैक्स भी बजट अनुमानों से पीछे हैं, जो कमजोर नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ को दर्शाता है. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि रेवेन्यू अनुमान को पूरा करने के लिए, टैक्स उछाल सरकार के अनुमानों से लगभग दोगुना होना चाहिए – जो एक कठिन काम है.

सरकार इसे ठीक करने के लिए क्या कर रही है?

जीएसटी दरों में कटौती ग्रोथ को दोबारा जिंदा करने के व्यापक प्रयास का हिस्सा है. पहले की आयकर कटौतियों के साथ, यह कदम उपभोग को प्रोत्साहित करने, क्षमता उपयोग बढ़ने पर निजी निवेश को पुनर्जीवित करने और बदले में जीडीपी वृद्धि को गति देने के लिए डिज़ाइन किया गया है. मजबूत ग्रोथ से अंततः रेवेन्यू में इजाफा होगा, जिससे राजकोषीय घाटे को कंट्रोल में रखने में मदद मिलेगी. फिर भी, मांग बढ़ने में कुछ समय लगेगा. जीएसटी कटौती को त्योहारी सीजन के साथ जोड़कर सरकार इस अंतर को कम करने की उम्मीद कर रही है.

क्या सरकार इस साल राजकोषीय घाटे के लक्ष्य से चूक जाएगी?

नरेंद्र मोदी सरकार का राजकोषीय कंसोलिडेशन का रिकॉर्ड मजबूत रहा है और इस प्रतिष्ठा से समझौता करने की संभावना कम है. वित्त वर्ष 26 के लिए, उसने जीडीपी के 4.4 फीसदी का कठोर राजकोषीय घाटा लक्ष्य रखा है. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगर रेवेन्यू कम भी रहा, तो केंद्र सरकार बजट में निर्धारित कैपेक्स में कटौती कर सकती है या गैर-जरूरी खर्चों में कटौती कर सकती है ताकि लक्ष्य पर बने रह सकें. भारतीय रिजर्व बैंक और पब्लिक सेक्टर के उद्यमों से मिलने वाले हाई डिविडेंड के साथ-साथ आईडीबीआई बैंक और भारतीय जीवन बीमा निगम लिमिटेड (एलआईसी) से अपेक्षित डिसइंवेस्टमेंट से होने वाली इनकम से भी मदद मिलेगी.

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